तिरे शहर की सर्द गलियों की आहट
मिरे ख़ून में सरसराई
मैं चौंका
यहाँ कौन है
मैं पुकारा मगर
दूर ख़ाली सड़क पर कहीं
रात के डूबते पहर की ख़ामुशी चल पड़ी
रत-जगों की थकावट में डूबी हुई
आँख से ख़्वाब निकला कोई
लड़खड़ाता हुआ
रात के सर्द आँगन में गिरता हुआ
ख़ाली शाख़ों में अटके हुए
चाँद की आँख से एक आँसू गिरा
और सीने में गुम हो गया
धुँद की नर्म पोरें
मसामों में चलने लगीं
दो तरफ़ ईस्तादा दरख़्तों के नीचे
बहे आँसुओं की महक में मुझे
नींद आने लगी
नज़्म
पिछले पहर की दस्तक
अबरार अहमद