जिन सर-अफ़राज़ों की रूहें आज हैं अफ़्लाक पर
मौत ख़ुद हैराँ थी जिन की जुरअत-ए-बे-बाक पर
नक़्श जिन के नाम हैं अब तक दिल-ए-ग़मनाक पर
रहमत-ए-इज़द हो दाइम इन की जान-ए-पाक पर
फूल बरसाओ शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
फूल बरसाओ कि फूलों में है ख़ुशबू-ए-वफ़ा
थी सरिश्त-ए-पाक इन की आशिक़-ए-जू-ए-वफ़ा
मौत पर उन की गए जो रू-ए-दर-रू-ए-वफ़ा
क्यूँ न हों अहल-ए-वतन के अश्क-ए-ख़ूँ जू-ए-वफ़ा
फूल बरसाओ शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
थे वो फ़ख़्र-ए-आदमियत इफ़्तिख़ार-ए-ज़िंदगी
थे वो इंसाँ तुर्रा-ए-ताज-ए-वक़ार-ए-ज़िंदगी
उन के दम से था चमन ये ख़ार-ज़ार-ए-ज़िंदगी
था नफ़स उन का नसीम-ए-ख़ुश-गवार-ए-ज़िंदगी
फूल बरसाओ शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
चश्म-ए-ज़ाहिर-बीं समझती है कि बस वो मर गए
दर-हक़ीक़त मौत को फ़ानी वो साबित कर गए
जो वतन के वास्ते कटवा के अपने सर गए
ख़ूँ से अपने रंग तस्वीर-ए-वफ़ा में भर गए
फूल बरसाओ शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
देख लेना ख़ून-ए-नाहक़ रंग इक दिन लाएगा
ख़ुद-ग़रज़ ज़ालिम किए पर अपने ख़ुद पछताएगा
राह पर दौर-ए-ज़माँ आख़िर कभी तो आएगा
आसमाँ इस ख़ाक की तक़दीर को चमकाएगा
फूल बरसाओ शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर

नज़्म
फूल बरसाओ शहीदान-ए-वतन की ख़ाक पर
तिलोकचंद महरूम