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फूल और सितारा | शाही शायरी
phul aur sitara

नज़्म

फूल और सितारा

शब्बीर शाहिद

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सितारे
अब नुमू की आग मद्धम होती जाती है

हवा में निकहतों की ताज़गी कम होती जाती है
चमकते बाग़ियों की झाग मद्धम होती जाती है

सितारे
ख़ाक में रोईदगी कम होती जाती है

मगर वो फूल तो यकता था
उन सारे गुलाबों में

उसी का अक्स था
मेरे लहू में मेरे ख़्वाबों में

सितारे
रूह में उस का निशाँ

अब क्यूँ नहीं मिलता
सितारे

मेरे पहलू में वो गुल अब क्यूँ नहीं खिलता