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फीकी ज़र्द दोपहर | शाही शायरी
phiki zard dopahr

नज़्म

फीकी ज़र्द दोपहर

अब्दुल अहद साज़

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ख़ामोश ढली दोपहर
आकाश का खोया खोया नील

थकी थकी बीमार हवा
वक़्त के चलते डोरे से कुछ देर अलग सूने लम्हे

एहसास की ज़र्द लकीरें
याद के फीके साए

दूर दूर बे-रंग उफ़ुक़
शांत समुंदर की सूरत इक फैला फैला सा ठहराव

बुझा बुझा उचाट सा दिल
ऊबी ऊबी सोच

उकताहट में इक अन-जानी वहशत सी
सूने लम्हों के बाहर

जीवन के गुज़रते शोर का इक बोझल सा ख़याल
इस फैले फैले ठहराव की बे-कैफ़ी में

ग़र्क़ाबी सी
वीरानी सी