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पेश-ओ-पस | शाही शायरी
pesh-o-pas

नज़्म

पेश-ओ-पस

फ़रहत एहसास

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उस के आगे सन्नाटा है
वो काला है

उस के पीछे इक चेहरा है
वो प्यारा है

वो अपनी पीठ पे अपनी आँखें बाँधे जाता है
एक पाँव आगे की जानिब

दूसरा पीछे जाता है