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पयाम | शाही शायरी
payam

नज़्म

पयाम

ज़े ख़े शीन

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दिल-ए-फ़सुर्दा को अब ताक़त-ए-क़रार नहीं
निगाह-ए-शौक़ को अब ताब-ए-इंतिज़ार नहीं

नहीं नहीं मुझे बर्दाश्त अब नहीं की नहीं
ख़ुदा के वास्ते कहना न अब की बार ''नहीं''

हमेशा वादे किए अब के मिल ही जा आ कर
हयात ओ वादा ओ दुनिया का ए'तिबार नहीं

दिखाई अपनी मोहब्बत को चीर कर सीना
मगर नुमूद मिरा शेवा-ओ-शिआर नहीं

मिरी बहन मिरी महबूबा हुब अजब शय है
जहान-ए-ख़ाक नहीं कुछ जो दोस्त-दार नहीं