फ़ज़ाओं में कोई नादीदा मा'लूम रस्ता है
जहाँ जज़्बात मुज़्तर रूह के सीमाब-पा क़ासिद
सऊबात-ए-सफ़र से बे-ख़बर इक दूर मंज़िल को
परों में उल्फ़तों के राज़ को ले कर
हवाओं की तरह आज़ाद बे-परवा उड़े जाएँ
पयाम-ए-शौक़ दे आएँ
अगर इस रात उस बे-राह रस्ते पर
कोई जज़्बा दिल-ए-बेताब से उठ कर
इनाँ-बर्दाश्ता निकले
इशारे गर्म जोश-ए-आरज़ू आएँगे एसिर पर
उन्हें पढ़ना
अगर मंज़ूर-ए-ख़ातिर हो
जवाबन एक जज़्बे को सवार-ए-बर्क़ कर देना
नज़्म
पयाम
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद