फिर ज़ोर दिखा
पतझड़ की हवा
आ मेरे बदन को चूम ज़रा
मैं इक ताज़ा
धानी पता
इस मौसम में हर इक से जुदा तन्हा तन्हा
एक तंज़ की सूरत रख़्शंदा
और बाक़ी सब मंज़र भूरा पतझड़ की हवा!
पतझड़ की हवा
आ मुझ को भी ख़ाकिस्तर कर
या मुझ से मिल कर अब तू भी धानी हो जा
नज़्म
पतझड़ की हवा
सुलतान सुबहानी