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पत-झड़ की एक सुब्ह | शाही शायरी
pat-jhaD ki ek subh

नज़्म

पत-झड़ की एक सुब्ह

कुमार पाशी

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सूखी धरती पे चुप चुप बरसने लगीं
नीम की पतियाँ

नीचे झुकने लगा नील-गूँ आसमाँ
नाम ले कर मिरा

दूर से जैसे कोई बुलाने लगा
याद आने लगा

एक गुज़रा हुआ दिन उम्मीदों-भरा
हल्के हल्के से रंगों में चलने लगी

दौर के शहर की
ठंडी ठंडी हवा