सूखी धरती पे चुप चुप बरसने लगीं
नीम की पतियाँ
नीचे झुकने लगा नील-गूँ आसमाँ
नाम ले कर मिरा
दूर से जैसे कोई बुलाने लगा
याद आने लगा
एक गुज़रा हुआ दिन उम्मीदों-भरा
हल्के हल्के से रंगों में चलने लगी
दौर के शहर की
ठंडी ठंडी हवा
नज़्म
पत-झड़ की एक सुब्ह
कुमार पाशी