EN اردو
पस्पाई | शाही शायरी
paspai

नज़्म

पस्पाई

वहाब दानिश

;

पाँच दस का
छोटा कमरा

दो
दरवाज़े

एक में गंदा पर्दा
दूजे में वो भी नहीं

बंद खिड़की
पैवंद-ज़दा मच्छर-दानी

डोलता पलंग
बैठो तो तहतुस-सुरा हिल जाए

एक औरत
आलम-ए-सुपुर्दगी में

पाँच दस के नोट
खूँटी पे टंगा ओवरकोट

लाम से बे-नैल-ओ-मुराम वापस
पस्पाई

मारका-आराई
जंग से हाता-पाई

सोचो तो सिदरत-उल-मुंतहा हिल जाए