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पस-ए-नविश्त | शाही शायरी
pas-e-nawisht

नज़्म

पस-ए-नविश्त

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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ख़ुदावंद मुझे तौफ़ीक़ दे मैं ऐसे ज़िंदा लफ़्ज़ लिक्खूँ
जो न लिक्खूँ मैं तो दुनिया बाँझ हो जाए

मगर फिर सोचता हूँ इतने ज़िंदा लफ़्ज़ लिक्खे जा चुके हैं
और लिखे जा रहे हैं

मैं भी लिख लूँगा तो क्या हो जाएगा
क्या ये पुराना आदमी फिर से नया हो जाएगा

या दूसरा हो जाएगा