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परेशानी-ए-दीद | शाही शायरी
pareshani-e-did

नज़्म

परेशानी-ए-दीद

अमीक़ हनफ़ी

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वो परेशान है
मेरी नज़रों को अपने बदन से लिपटते चिमटते हुए देख कर

कितनी बेचैन है
संदलीं जिस्म पर गोया लिपटे हुए साँप ही साँप हों

और मैं
उस के हर अंग पर

अपनी नज़रें जमाए हुए
सर-ब-सर आँख हूँ

ज़ेर-ओ-बम ज़ेर-ओ-बम पेच-ओ-ख़म पेच-ओ-ख़म
साक़ ज़ानू जबीं पुश्त सर-ता-क़दम

मेरी लेज़र शुआ'ओं के इस जाल में
ज़ुल्फ़ सीना कमर पूरा एक्वेरियम

पैरहन जिल्द और गोश्त के पार का सारा अहवाल भी
जानता हूँ उसे भी ये मालूम है

जानती है कि हम हैं बहम तक मिले फिर भी वो क्यूँ परेशान है