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परछाइयाँ पकड़ने वाले | शाही शायरी
parchhaiyan pakaDne wale

नज़्म

परछाइयाँ पकड़ने वाले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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डाइरी के ये सादा वरक़
और क़लम छीन लो

आईनों की दुकानों में सब
अपने चेहरे लिए

इक बरहना तबस्सुम के मोहताज हैं
सर्द बाज़ार में

एक भी चाहने वाला ऐसा नहीं
जो उन्हें ज़िंदगी का सबब बख़्श दे

धुँद से जगमगाते हुए शहर की बत्तियाँ
सज्दा करती हुई कहकशाँ

ख़ूब-सूरत ख़ुदाओं की फिरती हुई टोलियाँ
ऐसा लगता है सब

एक मुद्दत से परछाइयों को पकड़ने में मसरूफ़ हैं!!!