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पंछी ते परदेसी..... | शाही शायरी
panchhi te pardesi

नज़्म

पंछी ते परदेसी.....

बुशरा एजाज़

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परिंदे और परदेसी कभी वापस नहीं आते
जिला-वतनों के पाँव के तले

धरती बड़ी कमज़ोर होती है
कभी रस्ता नहीं होता

कभी साया नहीं होता
शजर की आरज़ुएँ धूप के आँसू बहाती हैं

मगर बारिश नहीं होती
परिंदे और परदेसी कभी वापस नहीं आते

दुआएँ गठरियों में बाँध कर
चौखट पे बैठी

माओं के पत्थर वजूदों पर
कभी मिट्टी नहीं होती

कभी सब्ज़ा नहीं उगता
परिंदे और परदेसी

अगर वापस कभी आएँ तो
सारे लोक गीतों दास्तानों

और मिट्टी में अमानत की हुई आँखों को
अपने साथ ले जाएँ!