फ़ज़ा में मुअल्लक़
ये शाख़ें हैं
या जड़ें हैं
उस बूढ़े बरगद की
जिस पे ज़मीन तंग हो गई है
हमारी तरह
जिस को वक़्त ने बे-वक़्त किया है
ज़मीन एक हद तक पनाह-गाह होती है
आसमान की पनाह की हद कोई नहीं
ये शाख़ें जो दूसरा रूप हैं जड़ों का
ज़मीन से पलट कर आसमान की खेती में उगने को बे-ताब हैं
आसमान और ज़मीन के दरमियान
बंदों के अज़दहाम में
कौन है?
जो बरगद की आग़ोश वा किए
मेरी राह देखता है
नज़्म
पनाह
महमूदा ग़ाज़िया