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पहली दस्तक | शाही शायरी
pahli dastak

नज़्म

पहली दस्तक

ख़ालिद मोईन

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तुम ने पहली दस्तक दी
और लौट गए

हम ये सोच के दिल-दरवाज़ा वा कर बैठे
शायद फिर तुम लौट के आओ

लेकिन तुम तो क़र्या क़र्या घूमने वाली
शोख़ हवा का झोंका निकले

तुम क्या जानो
पहली दस्तक क्या होती है

दिल-दरवाज़ा कब खुलता है
तुम क्या जानो

धीमी धीमी आग में जलना क्या होता है
आप ही अपनी लौ में पिघलना क्या होता है

तुम ने पहली दस्तक दी
और लौट गए