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पहली बात ही आख़िरी थी | शाही शायरी
pahli baat hi aaKHiri thi

नज़्म

पहली बात ही आख़िरी थी

मुनीर नियाज़ी

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पहली बात ही आख़िरी थी
इस से आगे बढ़ी नहीं

डरी हुई कोई बेल थी जैसे
पूरे घर पे चढ़ी नहीं

डर ही क्या था कह देने में
खुल कर बात जो दिल में थी

आस-पास कोई और नहीं था
शाम थी नई मोहब्बत की

एक झिजक सी साथ रही क्यूँ
क़ुर्ब की साअत-ए-हैराँ में

हद से आगे बढ़ने की
फैल के उस तक जाने की

उस के घर पर चढ़ने की