तुम मिरे पास रहो
मिरे क़ातिल, मिरे दिलदार मिरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले,
आसमानों का लहू पी के सियह रात चले
मरहम-ए-मुश्क लिए, नश्तर-ए-अल्मास लिए
बैन करती हुई हँसती हुई, गाती निकले
दर्द के कासनी पाज़ेब बजाती निकले
जिस घड़ी सीनों में डूबे हुए दिल
आस्तीनों में निहाँ हाथों की रह तकने लगे
आस लिए
और बच्चों के बिलकने की तरह क़ुलक़ुल-ए-मय
बहर-ए-ना-सूदगी मचले तो मनाए न मने
जब कोई बात बनाए न बने
जब न कोई बात चले
जब घड़ी रात चले
जिस घड़ी मातमी सुनसान सियह रात चले
पास रहो
मिरे क़ातिल, मिरे दिलदार मिरे पास रहो
Be Near Me
Be near me,
my sweet torment, my love, be near me.
The moment this night descends,
drunk on the blood of the sky, the black night descends,
drenched in musky fragrance, bearing a diamond lancet,
when the night descends—wailing, laughing, singing,
jingling the violet bells of pain;
when hearts buried in breasts,
wait for the hands hidden in sleeves,
and wait with hope;
and the wine bottle gurgles, like a wailing child seeking contentment,
and is not consoled;
when nothing works,
nothing moves,
when the night descends,
when the wailing, lonely, black night descends,
be near me,
my sweet torment, my love, be near me.
नज़्म
पास रहो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़