पास के शहर से कर्फ़्यू की बे-आवाज़ चाप
धीरे धीरे
मिरे शहर की गलियों और चौराहों तक आ पहुँची है
रात की तरह ख़ौफ़ फैला है
दरवाज़े खिड़कियाँ चुप
कुत्ते भी चुप
हिरासाँ दूर दूर तक सड़कों को तकते हैं
फिर रोते हैं
पास के शहर में नारे उभरते हैं
एक ही साथ जैसे ढेर सारे बकरों की गर्दनों पे
धार-दार चाक़ू तैरते हैं
पेड़ों पे चाँदनी सितंबर की सहमी है
तन्हा परिंदे के हीरा जैसे दिल में बिल्ले की लहू लहू आँख डूब कर उभरती
सन्नाटा ज़मीं का आकाश से जा मिला है
घोड़ों की आग उगाती टॉप पास के शहर में और
अपने शहर में आ गया बेताल पेट्रोल-पंपों के पास खड़ा है
रात की तरफ़ ख़ौफ़ फैला है साँकल हिलाता है
चाँदनी सितंबर की पेड़ों पे रोती है
बिल्ले की लहू लहू आँख और परिंदा
बेचारा
नज़्म
पास के शहर में फ़साद
अख़्तर यूसुफ़