ख़्वाब और ख़्वाहिश में
फ़ासला नहीं होता
अक्स और पानी के
दरमियान आँखों में
आईना नहीं होता
सोच की लकीरों से
शक्ल क्या बनाओगे
दर्द की मुसल्लस में
ज़ाविया नहीं होता
बे-शुमार नस्लों के
ख़्वाब एक से लेकिन
नींद और जिग्रता
एक सा नहीं होता
जौहरी निज़ामों में
नाम भूल जाते हैं
कोड याद रहते हैं
एटमी धमाकों से
ताबकार नस्लों के
ख़्वाब टूट जाते हैं
शहर डूब जाते हैं
मरकज़े बिखरते हैं
दाएरे सिमटते हैं
रक़्स के तमाशे में
अर्ज़ ओ शम्स होते हैं
और ख़ुदा नहीं होता
सद-हज़ार सालों में
एक नूर लम्हे का
टूट कर बिखर जाना
हादसा तो होता है
वाक़िआ नहीं होता
हिस्ट्री तसलसुल है
एक बार टूटे तो
दूर-बीं निगाहें भी
थक के हार जाती हैं
गुम-शुदा ज़मीनों से
मुंक़ता ज़मानों से
राब्ता नहीं होता
नन्हे मुन्ने बच्चों के
नौ-बहार हाथों में
फूल कौन देखेगा
आने वाली सदियों में
तेरी मेरी आँखों के
ख़्वाब कौन देखेगा
ज़ेर-ए-आब चीज़ों का
कुछ पता नहीं होता!
नज़्म
पानी में गुम ख़्वाब
नसीर अहमद नासिर