जब दर्द की लहरें डूब गईं
जब आँखें चेहरा भूल गईं
तुम सोच के आँगन में कैसे
फिर याद के घुँगरू ले आए
मैं कैसी महक से पागल हूँ
फिर रक़्स-ए-जुनूँ में शामिल हूँ
फिर चेहरा चेहरा तेरा चेहरा
फिर आँख में तेरी आँखों का
पुर-कैफ़ नज़ारा झूम उठा
फिर सारा ज़माना झूम उठा
कब रात गई कब दिन जागा
कुछ होश नहीं, कुछ होश नहीं
नज़्म
पागल होश
ख़ालिद मलिक साहिल