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पा-ब-गिल | शाही शायरी
pa-ba-gil

नज़्म

पा-ब-गिल

सलीमुर्रहमान

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इक भिकारी की मानिंद
इक पेड़ वीरान से रास्ते पर खड़ा है

कोई भूला-भटका मुसाफ़िर जो गुज़रे कभी
एक पल को रुके

नर्म छाँव में दम ले ज़रा
और चलता बने

रहगुज़र पर वो बे-आसरा पेड़ चुप-चाप तकता रहे
अपने दामन को फैलाए

हर जाने वाले मुसाफ़िर को शाख़ें पुकारें
मगर कौन आए