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नुमाइश | शाही शायरी
numaish

नज़्म

नुमाइश

अबरारूल हसन

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रात में भी गया
इक नुमाइश थी उम्दा तसावीर की

शहर के चीदा चीदा मुअज़्ज़िज़ ख़वातीन-ओ-हज़रात
चेहरों पे मौज़ूँ मिलावट

नफ़ासत की
संजीदगी की

फ़ुनून-ए-लतीफ़ा के इदराक की
अपनी मौजूदगी से यक़ीं दूसरों को दिलाते हुए

कितने बा-ज़ौक़ हैं
काश ख़ुद भी यक़ीं कर सकें

रात अच्छी नुमाइश थी
मैं भी नुमाइश में तस्वीर था