रात में भी गया
इक नुमाइश थी उम्दा तसावीर की
शहर के चीदा चीदा मुअज़्ज़िज़ ख़वातीन-ओ-हज़रात
चेहरों पे मौज़ूँ मिलावट
नफ़ासत की
संजीदगी की
फ़ुनून-ए-लतीफ़ा के इदराक की
अपनी मौजूदगी से यक़ीं दूसरों को दिलाते हुए
कितने बा-ज़ौक़ हैं
काश ख़ुद भी यक़ीं कर सकें
रात अच्छी नुमाइश थी
मैं भी नुमाइश में तस्वीर था
नज़्म
नुमाइश
अबरारूल हसन