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नॉस्टेलजिया | शाही शायरी
nostalgia

नज़्म

नॉस्टेलजिया

सिराज फ़ैसल ख़ान

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वो जब नाराज़ होती थी
तो अपने गार्डेन

में जा के मुझ को
फ़ोन

करती थी
सताने के लिए मुझ को

वो कहती थी
बहुत बनने लगे हो तुम

मज़ा तुम को चखाउंगी
तुम्हारी वो जो गुड़िया है मिरे अंदर

मैं उस की
उँगलियों में सैकड़ों काँटे

चुभाऊँगी
रुलाउंगी

मैं कहता था
अगर तुम ने

मिरी प्यारी सी गुड़िया को
रुलाया तो

क़सम से मैं
तुम्हारा वो जो बाबू है

मिरे अंदर
मैं उस की

जान ले लूँगा