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नॉस्टेलजिया | शाही शायरी
nostalgia

नज़्म

नॉस्टेलजिया

परवेज़ शहरयार

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वक़्त कभी ठहरता नहीं
समुंदर की लहरों की तरह

मुतवातिर चलता रहता है
लेकिन

तारीक दलदल में फँसे हुए लम्हे
इन साअतों का इर्तिआश

चंद सानिए के सरगम के साए
तमाम उम्र रूह में पैवस्त हो कर

इंसान का तआक़ुब करते रहते हैं
रहम-ए-मादर की शिरयानें जैसे

बहरें मौजों के मुहीब साए की तरह
मकीन-ए-रहम के नन्हे वजूद को

ढूँढती हैं बार बार
मुड़ मुड़ के पीछे देखती हैं अश्क-बार

मगर
गुज़रा हुआ लम्हा बाद-ए-नसीम का इक झोंका

आता नहीं दोबारा
कभी ठहरता नहीं है आब-ए-रवाँ

ठहरती हैं तो सिर्फ़ यख़-बस्ता यादें और
चंद सानिए के लिए

तारीक दलदल से मुसलसल
बरामद होने वाला

सात सुरों का सरगम