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निरवान | शाही शायरी
nirwan

नज़्म

निरवान

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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जिस्म के रास्तों से गुज़र कर
मुतमइन नफ़्स की आरज़ू में

जो भी निकला वो वापस न आया
रूह की वहशतों में उलझ कर

मुतमइन नफ़्स की आरज़ू में
जो भी निकला वो वापस न आया

लोग फिर देखते क्यूँ नहीं हैं
लोग फिर सोचते क्यूँ नहीं हैं

लोग फिर बोलते क्यूँ नहीं हैं