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नींद | शाही शायरी
nind

नज़्म

नींद

ज़ीशान साहिल

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ख़्वाब के रास्ते में
हवा का लगाया हुआ

एक दरख़्त सो रहा है
दरख़्त के नीचे

रात की बारिश से
ज़मीन अभी तक भीगी हुई है

आसमान
छुपा हुआ है बादलों में

और पानी के क़तरे
गिर रहे हैं

उस की आँखों पर
मेरे बग़ैर

वो चलना शुरूअ कर दी है
एक आईने के सामने

और गिर पड़ती है
ख़ुद को देखते हुए

एक स्ट्रेचर पर
जिसे इस्तिक़बालिया काउन्टर से

वापस कर दिया जाता है