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नींद के तआक़ुब में | शाही शायरी
nind ke taaqub mein

नज़्म

नींद के तआक़ुब में

चन्द्रभान ख़याल

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नींद के तआक़ुब में
दूर दूर तक ला-हासिल

देर से भटकता हूँ
नीली आँखों वाली

जंगली बिल्ली
बार बार दुम हिलाती है

मेरी चारपाई के नीचे
नीम रौशन लैम्प के इर्द-गिर्द

कीड़ों पर झपटती छिपकली
बे-ख़बर है अपने अंत से

कितना ग़ैर-मुतवक़्क़े होगा
मिल जाना अनंत से

मिट्टी के तेल की गंध
क़ुलांचें भर रही है कमरे में

बे-लगाम घोड़ी की तरह
छत पर

रेंगती हुई ख़ामोशी
बार बार दोहरा रही है

पापी निशाचरों का गीत
और नींद मीलों दूर

किसी ना-मालूम दरख़्त के पत्तों में छुपी
चिड़ियों सा चहचहा रही है

मुझे बुला रही है