मेरी आँखों ने
नए नए ख़्वाबों को तो दावत दे दी है
सो अपने हाथों को फिर से जुम्बिश दूँगा
जिन पर आ कर टूट चुके हैं
ना जाने कितने ही हुबाब
नींद के फेर ने क्या कर डाला
जागती आँखों से मैं अब ये सोच रहा हूँ
क्या होगा जब पलकों पर मेहमान आएँगे
मेरे पास सिवाए
वही पुराने ख़्वाबों की रूखी सूखी ताबीरों के क्या रक्खा है
नज़्म
नींद का फेर
मलिक एहसान