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नेमुल-बदल | शाही शायरी
nemul-badal

नज़्म

नेमुल-बदल

मलिक एहसान

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मुझे मालूम है कि कुछ न बदलेगा
न शाख़-ए-हिज्र पर आसार आएँगे ख़िज़ाओं के

ख़यालों के समुंदर में न कुछ तब्दीली आएगी
न किरदारों के रोज़ ओ शब में कोई फ़र्क़ आएगा

मगर इन नज़्मों ग़ज़लों की कहानी और गीतों की
आती जाती लहरों से

ये मेरा ख़ुश्क साहिल
सैराब तो होता रहे

मुझ को मेरे होने का एहसास तो होता रहे