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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

ज़ीशान साहिल

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मोहब्बत का सबक़ आसाँ था लेकिन भुला बैठा
मैं इक शोले के जिस से दूर रहता था

बहुत नज़दीक आ बैठा
बदन तो ख़ैर जलना था मगर मैं

रूह तक अपनी जला बैठा
सितारे तोड़ कर लाना बहुत आसाँ था

लेकिन मैं उन को बहते पानी में गिरा बैठा
परिंदे शाम होने पर चमन में

आशियाँ के पास आ पहुँचे थे
मैं उन को उड़ा बैठा

दरीचे से हवा आने लगी थी
ख़्वाब जाग उठ्ठे थे

मैं रस्ते में आ बैठा