ऐ ख़ुदा ऐ लम-यज़ल
हर नज़र में ख़्वाब रख
क्या ज़मीन क्या फ़लक
हद-ए-आब-ओ-ताब रख
इंतिशार-ए-हुस्न में
हुस्न-ए-इंतिख़ाब रख
ख़ार-ओ-ख़स समेट ले
हर तरफ़ गुलाब रख
दिल के ताक़चे न देख
जो है बे-हिसाब रख
अपनी बारगाह में
सब को बारयाब रख

नज़्म
नज़्म
ज़ीशान साहिल