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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

शीरीं अहमद

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हर रात एक सुबह का
सुबह को दोपहर का

दोपहर को शाम का
और शाम को फिर रात का

इंतिज़ार होता है
तुम्हारे एक मीठे बोल की चाहत में

मैं हर रोज़
चार बार मरती हूँ

फिर से जीने के लिए