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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

शबनम अशाई

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ये मैं तुम्हें देख रही हूँ
या.....

ये मेरे इर्द-गिर्द तुम्हारी परछाइयाँ हैं
या.....

ये तुम इक़रार की रेत पर मेरा नाम लिख रहे हो
या.....

ये तुम चिनार के सूखे पत्तों से मेरे लिए आग रौशन कर रहे हो
या.....

ये तुम मेरी आँखों को ख़्वाब दे रहे हो
या.....

सुनो, मैं जिस रोज़ या..... के ब'अद के ख़यालों को
नज़्म करने के क़ाबिल हो जाऊँगी

ख़ुद को शाएर समझने लगूँगी!