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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

शबनम अशाई

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उदासियों ने
मन के गिर्दा-गिर्द

इक धुआँ सा लपेट दिया है
काला धुआँ रूपहला धुआँ

धुवें में कुछ सोज़ है
छोटे रिश्तों की सदा का

धुवें में कुछ नूर है
पराए अपनों के चेहरों का

सोज़-ओ-नूर की धुँद में
जिगर अपनी आँखें मूँद रहा है

.....मैं
मन भर धुआँ पी लेती हूँ

किसी चारासाज़ की हाजत नहीं
गाती हूँ.....