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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

सईदुद्दीन

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मैं उसे बुलाता हूँ
और वो आ जाता है

मेरी किताबों के वरक़ उलट पलट करता है
फिर वो मेरी मेज़ पर पाँव रख कर

उस की माँ ने भी उस के साथ यही सुलूक किया था
और उस की माँ के साथ

और उस की माँ ने भी
तो क्या तुम ने अपनी माँ को मुआफ़ कर दिया था?

और क्या लौट के आने वाली माँ
पहले वाली माँ ही थी?

मेरे सवालात पर मेरी माँ की नज़रें झुक गई थीं
हमें जन्म देने वाली माएँ

और हमारी परवरिश करने वाले बाप
एक दिन हम से झूट बोल कर निकलते हैं

और जब वो लौट कर आते हैं
तो वो वो नहीं होते

हमारे सवालात पर
उन की निगाहें नीची होती हैं

आज मैं अपने बच्चे से झूट बोल कर घर से निकला हूँ
और बस क्या बताऊँ

मैं अपने घर का रास्ता भूल गया हूँ