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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

मलिक एहसान

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सख़्त सतह से मिट्टी हटा कर
गहरी ज़मीं के अंदर जा के

जज़्ब हो चुके गदले पानी को उपर लाता हूँ
फिर तश्बीहों अलामतों

और इस्तिआरों के बर्तन में
उस को साफ़ ओ कशीद कर के

अपनी प्यास बुझाता हूँ
और दुनिया की तिश्ना-लबी भी

सैराबी हासिल करती है