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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

ख़लील अफ़राज़

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ख़ानिस-पुर की वादी में
शाम के झुटपुटे में

एक चश्मे के किनारे बैठे हुए
जब तुम ने...

अपनी पिंडुलियों को बरहना किया था
तो धुँदलाते दरख़्तों में

रौशनी सी फैल गई थी
तुम्हारे लम्स से

चश्मे का पानी
शफ़्फ़ाफ़ लहरों में मचल उठा था

जिन में मेरा अक्स....
आज भी डोल रहा है