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नज़्म कहने के बा'द | शाही शायरी
nazm kahne ke baad

नज़्म

नज़्म कहने के बा'द

क़ाज़ी सलीम

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लो मैं एक इकाई हूँ
पत्थर के टुकड़े की तरह एक इकाई

पत्थर की तहरीरें देखो
कितनी धारें

लहरें बीच
भँवर

जैसे तूफ़ानी समुंदर की नब्ज़ें चलते चलते थम जाएँ
जैसे समुंदर मर जाए