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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

जीलानी कामरान

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आओ
शबनम के पानी में झांकें

हवाओं के उड़ते हुए नर्म झोंकों से खेलें
फ़ज़ाओं में बिखरे हुए ख़्वाब ढूँडें

जो बचपन में हम से
ज़माने ने छीने थे और अहल-ए-दुनिया की छत पर

बिखेरे थे!
लोगों से, राहों से

अपनी किताबों से पूछता था ख़्वाबों की दुनिया कहाँ है?
ख़ुदा को पुकारें

जो हर शय के पर्दे में पर्दा है देखें
वो किस किस की सुनता है

ख़्वाबों में झांकें
कि ख़्वाबों के अंदर वो बस्ती है जो

ख़ुश-नसीबों की बस्ती है, अच्छे ख़ुदा के इरादों की बस्ती है
शायद वहीं

अपने बचपन के छीने गए ख़्वाब रहते हैं हम से बिछड़ कर
जुदाई के सदमों को सहते हैं