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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

आसिमा ताहिर

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रात के फैलते सन्नाटों में
दिल के ज़िंदान में इक याद का दीपक सा जला

फड़फड़ाती है बहुत लौ उस की
वादी-ए-हिज्र से आती हैं सदाएँ जितनी

उस के सीने में बहुत गूँजती हैं
इस्म-ए-हिजरत से अजब सब्ज़ हुआ है ज़िंदाँ

इक सकूँ है कि जो वहशत में भी आसूदा है