तअल्लुक़ात का अफ़्सूँ कुदूरतों का ग़ुबार
दिलों का बुग़्ज़, मोहब्बत के दाएरों का हिसार
मसर्रतों का हर इक रंग, ग़म का हर लम्हा
गुज़रती मौज के मानिंद उभर के डूब गया
ख़ुलूस ओ महर ओ अदावत की सारी ज़ंजीरें
पलक झपकने की मोहलत में जल के राख हुईं
न कटने वाले कठिन दिन ख़याल ओ ख़्वाब हुए
न आने वाले जो दिन थे वो आ के बीत गए
ग़म-ए-फ़िराक़ शब-ए-इंतिज़ार सुब्ह-ए-विसाल
बस एक गर्द-ए-ज़माना मुहीत है सब पर
ये सुब्ह-ए-नौ है कि शाम-ए-हयात की मंज़िल
ये इख़्तिताम-ए-सफ़र है कि इब्तिदा-ए-सफ़र
नज़्म
नया सफ़र
महमूद अयाज़