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नविश्ता-ए-पस-ए-दीवार | शाही शायरी
nawishta-e-pas-e-diwar

नज़्म

नविश्ता-ए-पस-ए-दीवार

सरवर आलम राज़

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ये रंग-ओ-बू ये नज़ारे ये बज़्म-आराई
नियाज़-ओ-नाज़-ओ-अदा हुस्न इश्क़ रा'नाई

शबाब-ए-नज़्म-ओ-ग़ज़ल, दर पै-ए-शकेबाई
मुझे ये साअत-गुज़राँ कहाँ पे ले आई

क़रार देख लिया इज़्तिरार देख लिया
ग़म-ए-हबीब ग़म-ए-रोज़गार देख लिया

उदास चेहरों पे उड़ता ग़ुबार देख लिया
नवा-ए-शौक़ को बे-इख़्तियार देख लिया

ख़िज़ाँ-गज़ीदा सा रंग-ए-बहार देख लिया
गुमाँ-दरीदा यक़ीन तार तार देख लिया

तमाम इश्वा-ए-हुस्न-ए-निगार देख लिया
जुनूँ का सज्दा सर-ए-कू-ए-यार देख लिया

सवाद-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद बे-वक़ार देख लिया
रहा न ख़ुद का भी फिर ए'तिबार देख लिया

कभी जो देखा न था बार बार देख लिया
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मा'लूम

नविश्ता-ए-पस-ए-दीवार क्या है क्या मा'लूम