रात इक नीले ख़्वाब में मैं ने
पानी की आमेज़िश से
गूँधे गए गंदुमी रंग में
अपनी महबूबा के जैसे
दो नीम-बरहना जिस्म हैं देखे
पहला ख़ुशी का
दूजा ग़म का
सूरत क़ामत और बदन के ख़द्द-ओ-ख़ाल भी इक जैसे थे
बस दोनों में एक फ़र्क़ था
ग़म के जिस्म में पाया मैं ने
इक गहरा सा नाफ़-पियाला
नज़्म
नाफ़-पियाला
मलिक एहसान