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नाफ़-पियाला | शाही शायरी
naf-piyala

नज़्म

नाफ़-पियाला

मलिक एहसान

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रात इक नीले ख़्वाब में मैं ने
पानी की आमेज़िश से

गूँधे गए गंदुमी रंग में
अपनी महबूबा के जैसे

दो नीम-बरहना जिस्म हैं देखे
पहला ख़ुशी का

दूजा ग़म का
सूरत क़ामत और बदन के ख़द्द-ओ-ख़ाल भी इक जैसे थे

बस दोनों में एक फ़र्क़ था
ग़म के जिस्म में पाया मैं ने

इक गहरा सा नाफ़-पियाला