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ना-रसा | शाही शायरी
na-rasa

नज़्म

ना-रसा

आदिल हयात

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मुझे बर्बाद करने में
मज़ा आया तो कुछ होगा

सियाही पोत दी तक़दीर पर
ला कर मुझे तारीकियों के ग़ार में छोड़ा

जहाँ मैं साथ इक इक साँस के
मक़दूर-भर कोशिश किए जाता हूँ लेकिन

मुझे मिलती नहीं है राह जिस पर
मैं क़दम आगे बढ़ाऊँ

अपने हिस्से की
वो चीज़ें छीन लूँ

जिन को
छुपा कर मेरी आँखों से

मिरे ही वास्ते रक्खा गया है