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ना-बीनाई में एक ख़्वाब | शाही शायरी
na-binai mein ek KHwab

नज़्म

ना-बीनाई में एक ख़्वाब

ख़ुर्शीद रिज़वी

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मैं हूँ सर-चश्मा-ए-अव्वल से बहुत दूर
पए-नूर भटकने वाला

रौशनी अक्स-ब-अक्स आती है इन आँखों तक
आइने अपनी ख़यानत से नहीं ख़ुद वाक़िफ़

इन को मालूम नहीं
ज़ाविए इन के बदल देते हैं किरनों का मिज़ाज

आज इस नूर-ए-मोहर्रफ़ से है आँखों में थकन
दिल में ख़न्नास की सरगोशी-ए-पैहम की चुभन

काश सर-चश्मा-ए-अव्वल से उतर आए कोई रास्त किरन
जो मिरी रूह की ज़ुल्मत में उजाला कर दे

मैं कि हूँ कोर मुझे देखने वाला कर दे