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न दी अंग्रेज़ ने 'ग़ालिब' को पेंशन | शाही शायरी
na di angrez ne ghaalib ko pension

नज़्म

न दी अंग्रेज़ ने 'ग़ालिब' को पेंशन

मोहम्मद यूसुफ़ पापा

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बहुत हूँ जान से बेज़ार यारो
हुई तालीम दिल पर बार यारो

मुझे बनना नहीं फ़नकार यारो
सुरय्या से है मुझ को प्यार यारो

मुझे करनी है दिल की बात मेंशन
अटैंशन ऐ दिल-ए-नादाँ अटैंशन

है भौतिक-शास्त्र में इक चीज़ लाइट
करें गर तजरबा जाती है साईट

अजब होती है कुछ रंगों में फ़ाइट
कि मिल कर सात हो जाते हैं वाइट

मंगाओ मैग्नट देखो डिटेनशन
अटैंशन ऐ दिल-ए-नादाँ अटैंशन

चलो अब पीरियड मेहंदी का आया
कहीं दर्शन कहीं रूपक की छाया

गुरु ने सोरठा जम कर पढ़ाया
हमारी तो समझ में कुछ न आया

'कबीर' और 'सूर' में रहता है टेनशन
अटैनशन ऐ दिल-ए-नादाँ अटैनशन

हर इक साइंस का छीका गढ़ंत है
बड़ा दुश्मन मिरे जी का गढ़ंत है

तप-ए-दिक़ का नया टीका गढ़ंत है
नमक बिल्कुल नहीं फीका गढ़ंत है

बढ़ा जाता है हर स्टेप पे टेनशन
अटैनशन ऐ दिल-ए-नादाँ अटैनशन

है उर्दू का भी लम्बा पीर साक़ी
बनाती है हरम को दैर साक़ी

कहीं 'मोमिन' का ज़िक्र-ए-ख़ैर साक़ी
कहीं 'नासिख़' की हालत ग़ैर साक़ी

न दी अंग्रेज़ ने 'ग़ालिब' को पेंशन
अटैनशन ऐ दिल-ए-नादाँ अटैनशन