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मुट्ठी खोल | शाही शायरी
muTThi khol

नज़्म

मुट्ठी खोल

कुमार पाशी

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चारों तरफ़ अंधेरा है
और उस की मुट्ठी में जुगनू हैं

मैं कहता हूँ
मुट्ठी खोल

मुट्ठी खोल उजाला होगा
सब बोले, वो मंज़र देखने वाला होगा

वो कहता है
मुट्ठी खोल

आसमान पर चाँद
न कोई सितारा है

चारों तरफ़ अँधियारा है
लेकिन मेरे हाथ में तो अँगारा है