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मुस्कुराहट का बीज | शाही शायरी
muskurahaT ka bij

नज़्म

मुस्कुराहट का बीज

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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किस जगह मैं ने उस को देखा था
कौन सा माह

कौन सा दिन था
याद इस के सिवा नहीं कुछ भी

कार ज़न से निकल गई थी मगर
कार से झाँकता हुआ चेहरा

देख कर मुझ को मुस्कुराया था
जाने क्या बात है

कि मैं जब भी
जिस जगह भी उदास होता हूँ

कार से झाँकता हुआ चेहरा
याद आता है

मुस्कुराता है
और मैं मुस्कुराने लगता हूँ