यहाँ से दो कनीज़ें जा रही थीं
रास्ते में ख़ुद से आसूदा हुईं
और सो गईं
सावन के मेले में
मुसलसल चलते रहने की ख़ुशी आसूदा करती है
मुसलसल चलते रहने की ख़ुशी में लेट जाती है मोहब्बत घास में
पत्थर की सिल पर यादगारी सीढ़ियों के बीच
गीले मौसमों में पाँव में आती हुई उन सीढ़ियों के साथ
जिन पर लोग चलते हैं
और इक दम हँसने लगते हैं
मुसलसल चलते रहने की ख़ुशी में
अब उन के पाँव पर शबनम गिरेगी
आओ चल दें बाँध लें जूतों के तस्मे
आओ चल दें उन कनीज़ों के तआ'क़ुब में
जो आसूदा हुईं
और सो गईं पत्थर की सिल पर
यादगारी सीढ़ियों के बीच
गीले मौसमों में
अब उन के पाँव पर शबनम गिरेगी
नज़्म
मुसलसल चलते रहने की ख़ुशी में
मोहम्मद अनवर ख़ालिद